Friday, 29 August 2025

ज्ञान चतुर्वेदी


 व्यंग्य की 'ज्ञान परंपरा'

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ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य में इस कदर मुब्तला लेखक हैं कि व्यंग्य से उन्हें अलगाकर देख पाना संभव नहीं। मानो ज्ञान और व्यंग्य एक-दूसरे के पर्याय बन गए हों, सिक्के के दो कभी न अलग होने वाले पहलुओं की तरह। वे हमारे समय के सर्वाधिक समर्थ व्यंग्यकार हैं। अपने व्यंग्यों में वे समय-समाज के निर्मम सत्यों का मात्र उद्घाटन ही नहीं करते बल्कि उन पर गहन वैचारिक टिप्पणी करते हैं। ये वैचारिक टिप्पणियां भी व्यंग्य की बहुआयामिकता से सम्पन्न होने के कारण पाठक को सहज रूप से प्रभावित करती हैं। कहना न होगा कि व्यंग्यदृष्टि और लोकदृष्टि के सम्यक बहाव में ज्ञान लोकप्रियता और साहित्यिकता की खाई को भरसक पाटने का भी कार्य करते हैं। हम आज उस समाज के नागरिक हैं जहां नंगापन एक जीवनशैली के रूप में स्वीकृत हो गया है। विसंगतियों से भरपूर इस उत्तर आधुनिक समय में ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य लेखन को एक ज़रूरी हस्तक्षेप की तरह देखा और पढ़ा जाना चाहिए। कई अर्थों में वह परसाई और जोशी के मानस अभिमन्यु की तरह विकृत यथार्थ के उस चक्रव्यूह को भेदते प्रतीत होते हैं जहां आम लेखक की पहुंच नहीं। उदात्त मानवीयता से परिपूर्ण अपने उद्देश्य में जिसकी नीयत और पक्षधरता शीशे की तरह एकदम साफ है। अपनी इस यात्रा में वे नितांत नई परंपरा गढ़ते हैं जिसे व्यंग्य की 'ज्ञान परंपरा' कहा जाना चाहिए।


- राहुल देव

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#पंचकाका_कहिन

ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग्य-संसार


व्यंग्य-संग्रह :

● प्रेत कथा

● दंगे में मुर्गा

● मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ’ 

● बिसात बिछी है

● ख़ामोश! नंगे हमाम में हैं

● प्रत्यंचा

● बाराखड़ी

● अलग

● रंदा

● गैरतलब व्यंग्य

● संकलित व्यंग्य

● चर्चित व्यंग्य


व्यंग्य-उपन्यास :

● नरक-यात्रा 

● बारामासी

● मरीचिका

● हम न मरब

● पागलख़ाना

● स्वांग

● एक तानाशाह की प्रेमकथा

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