प्रेम जनमेजय : व्यंग्य की चौथी धारा
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प्रेम जनमेजय ने नई जमीन तोड़ी है और सही जगह तोड़ी है। प्रेम ने रेत में बीज डालने का काम किया है। उन्होंने अपनी सोच को तोड़कर बाहर आने का प्रयास किया है। जब प्रेम ने लिखना शुरु किया तब हिंदी में व्यंग्य-लेखन के तीन स्कूल चल रहे थे; आज भी चल रहे हैं- परसाई स्कूल, शरद जोशी स्कूल और त्यागी स्कूल। हर स्कूल की अपनी पद्धति, सिलेबस और केरीकुलम। ... मैं ये तो नहीं कहूंगा कि प्रेम जनमेजय स्कूल भी चल पड़ा है- पर इधर के बहुत सारे युवा लेखन को पढ़कर लगता है कि प्रेम जनमेजय स्कूल का भी उद्घाटन हो गया है।
- डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी
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#पंचकाका_कहिन
प्रेम जनमेजय का व्यंग्य-लेखन
● राजधानी में गंवार
● बेर्शममेव जयते
● कौन कुटिल खल कामी
● हंसो हंसो यार हंसो
● ज्यों ज्यों बूड़े श्याम रंग
● लीला चालू आहे!
● भ्रष्टाचार के सैनिक
● सींग वाले गधे
● मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ
● चुनिंदा व्यंग्य
● चयनित व्यंग्य
व्यंग्य नाटक-
● तीन व्यंग्य नाटक व्यंग्य
● क्यूं चुप तेरी महफल में है
आलोचना-
● आजादी के बाद का हिंदी गद्य व्यंग्य
● प्रसाद के नाटको में हास्य व्यंग्य
● भारतीय साहित्य के निर्माता : श्रीलाल शुक्ल
संपादन-
● धर्मवीर भारती : धर्मयुग के झरोखे से
● नरेंद्र कोहली एक मूल्यांकन
● व्यंग्य सर्जक : नरेंद्र कोहली
● बींसवीं शताब्दी उत्कृष्ट साहित्य
● हिंदी व्यंग्य की धार्मिक पुस्तक: परसाई
● शरद जोशी : हिंदी व्यंग्य का नाविक
● हम भी व्यंग्य की ज़बान रखते हैं
● खुली धूप का यात्री : रवींद्रनाथ त्यागी,
● हिंदी व्यंग्य में नारी स्वर
● व्यंग्य के नेपथ्य
संपादन (पत्रिका)-
● व्यंग्य-यात्रा (त्रैमासिक) वर्ष 2004 से नियमित।

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