Tuesday, 2 September 2025

साहित्य और समाज के दोहरे चरित्रों को खोलते व्यंग्य/ डॉ. नीरज दइया

व्यंग्य विधा में देशव्यापी पहचान बनाने वाले व्यंग्यकारों में राजस्थान से बुलाकी शर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका सद्य प्रकाशित दसवां व्यंग्य संग्रह ‘पांचवां कबीर’ साहित्य और समाज के दोहरे चरित्रों को खोलते हुए व्यंग्य-बाणों से भरपूर प्रहार करने में समर्थ है। साहित्य और साहित्यकारों पर केंद्रित शीर्षक व्यंग्य में साहित्यिक नामों की फतवेबाजी से हो रही पतनशीलता के साथ दोहरे चरित्रों को केंद्र में रखते हुए निशाना साधा गया है। व्यंग्य का अंश है- ‘अगले सप्ताह ही तुम्हारी पुस्तक पर मैं स्वयं चर्चा रखवाता हूं। अपने खर्चे पर। कबीर तो बिचारे राष्ट्रीय कवि हैं। तुम्हारी प्रतिभा अंतरराष्ट्रीय है। इसलिए मैं तुम्हें शहर का इकलौता कवि कीट्स अवतरित करके अंतरराष्ट्रीय कवि स्थापित कर दूंगा। अब तो गुस्सा छोड़ो।’ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा स्थितियों का चित्रण करते हुए बहुत कुछ अनकहा भी अपने पाठकों तक पहुंचाने में जैसे सिद्धहस्त है।

            बुलाकी शर्मा के व्यंग्यों में सर्वाधिक उल्लेखनीय भाषा-शैली है। वे किसी भी तथ्य, बिंदु, छोटे से समाचार अथवा घटना को कहानी के रूप में बतरस के साथ कहन-कौशल रखते हैं। साधारण से असाधारण और असाधारण से साधारण स्थितियों में व्यंग्य खोजना और उनमें अपने पाठकों को ऐसे प्रवेश कराते हैं कि आश्चर्यचकित करते हैं। ‘पिता की फ्रेंड रिक्वेट’ में आधुनिक समय की त्रासदी को जिस ढंग से फेसबुक मित्रता आग्रह के एक छोटे से प्रसंग से कथात्मक रूप से संजोया है वह अपने आप में असाधारण व्यंग्य इस लिहाज से बनता है कि आज उत्तर आधुनिकता के समय पीढ़ियों का अंतराल, सभ्यता और संस्कार सभी कुछ उनके व्यंग्य से पाठक के सामने केंद्र में आकर खड़े हो जाते हैं। व्यंग्यकार का सबसे बड़ा कौशल यही होता है कि वह अपना निशाना साधते हुए ऐसे पर्खचे उड़ाए कि जब तक पाठक उस अहसास और अनुभूति तक पहुंचे तो उसे भान हो जाए कि बड़ा धमाका हो चुका है। उसे कुछ करना है, यह कुछ करने का अहसास करना ही व्यंग्य की सफलता है। व्यंग्यकार शर्मा के लिए व्यंग्य हमारे समय की विद्रूपताओं को रेखांकित करते हुआ मानव मन में बदलावों के बीजों को अंकुरित करने का एक माध्यम है।

            संग्रह ‘पांचवां कबीर’ में आकार की दृष्टि से छोटे, बड़े और मध्यम सभी प्रकार की व्यंग्य रचनाएं संकलित हुई हैं, वहीं अंतिम व्यंग्य ‘मेरी डायरी के कुछ चुनिंदा पृष्ठ’ स्वयं लेखक द्वारा राजस्थानी भाषा से अनूदित रचना है। बुलाकी शर्मा की प्रस्तुत कृति में कोरोना काल से जुड़े कुछ व्यंग्य हैं, तो समकालीन राजनीति-साहित्य समाज को भी इसमें सीधा-सीधा निशाने पर लिया गया है। अखबारों में कॉलम के रूप में लिखे जाने व्यंग्य अपनी तात्कालिकता और समसामियता के कारण समयोपरांत वह असर नहीं छोड़ते हैं जो उसके लिखे जाने के वक्त रहा होता है। जाहिर है बुलाकी शर्मा के इस व्यंग्य संग्रह में कुछ ऐसे व्यंग्य भी हैं जिनमें स्थानीयता और तात्कालिक स्थितियां हावी हैं। यह सुरुचिपूर्ण बेहद पठनीय संग्रह को इंडिया नेटबुक्स नौएडा ने प्रकाशित किया है।

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आभार : श्री सुभाष राय जी, श्री बुलाकी शर्मा जी


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